शुक्रवार, १९ फेब्रुवारी, २०२१

बदलाव

बदलाव

मिज़ाज मौसम का कुछ बदल रहा है

बगैर मौसम के भी पानी बरस रहा है


हरवक्त शहरों में चमकदमक रहती हैं 

रात दिन यहांपर लाईटें जो जलती हैं


देखकर रात भर चकाचौंध शहरों की

बेवजह काँव-काँव होती है कौवों की


अजीबसा खौफ पुनः हवा में छाया है 

हरकोई करोना कि निगाह में आया है


भीड़ बढ गई, पर इंन्सान गुम हो गया

दौडते यंत्र का मात्र एक पुर्ज़ा हो गया


इंन्सान बदला ? या बदल गई प्रकृति 

सोचकरभी दिमागमें बात नहीं आती

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©शिवाजी सांगळे 🦋papillon

चिऊ काऊ आणि कोरोना १९०२२०२१


गुरुवार, १८ फेब्रुवारी, २०२१

सूना सपना



















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बुधवार, १७ फेब्रुवारी, २०२१

सुनो तो सही

 सुनो तो सही


कैसी ये आग इश्क जिसमें जलना चाहूँ

तुम हो शमा संग तुम्हारे मै जलना चाहूँ


प्यार जीवन की बगिया रंगबिरंगी मानो 

फूलोंसा खिलकर हमेशा महकना चाहूँ


कहें जमाना बडी कठिन है राह प्यारकी

चाहें जो हो उसपर दिल से चलना चाहूँ


होती रहीं है मुलाकातें दिलकश अपनी

लो उनपर गज़ल, कविता लिखना चाहूँ


सुनो तो सही तुमसे मै कुछ कहना चाहूँ

बात छुपाई दिलमें खुलकर बताना चाहूँ

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शनिवार, १३ फेब्रुवारी, २०२१

छळ भास



















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शुक्रवार, १२ फेब्रुवारी, २०२१

दास्तान

दास्तान 

खत्म सी होने लगी अब आरजू जीने की

क्या बयां करूं दास्तान-ए-दर्द पुराने की


बात सीधी हैं, होंगे ज़ाहिर घाव जिस्म के

समझेगा कौन गहराई रूह के निशाने की


नये रास्ते लोग नये मिलतें है जभी कभी

साथ कैसे दे उनको बात है ये सोचने की


आसान कभी वक्त कभी मुश्किल गुज़रा 

जुर्रत जो की थी तभी उससे उलझने की


दौड़ रही हैं ज़िन्दगी ये खुदकी रफ़्तार में

कहां ठहरेंगी खोज अजनबी ठिकाने की

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