मुक्त कविता
मुक्त छंद कविता
मन में दबी भावूकता
पता नहीं उसे,
कब है उसे बहना...
निकलती है,
अनगिनत सवाल लेकर
और थम जाती है
उस मोड पर उदासी के...
अछूते किनारे पर
देखती है, दर्पण में...
अपने आप को
खुद जो मग्न है
धूंधलाहट मे...
©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
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