ये उम्र बता जरा?
बुने थे कुछ सपने
रेशम की डोरसे
फिसल गये हाथों से
रेत की तरहा...
वक्त चलता रहा
घडीके फेरों के साथ
तरसती रही उम्र
सुनी र्आँखों की तरहा...
क्या पता था आसमांको
जमीं और उसके बीच
थमेंगी कोहरेकी चादर
दरार की तरहा...
ये उम्र बता जरा?
कब तब चलेगा यह
सिलसिला धुंप छाँव का
दिन और रात की तरहा...
© शिवाजी सांगळे 🎭
http://marathikavita.co.in/hindi-kavita/t25723/new/#new
बुने थे कुछ सपने
रेशम की डोरसे
फिसल गये हाथों से
रेत की तरहा...
वक्त चलता रहा
घडीके फेरों के साथ
तरसती रही उम्र
सुनी र्आँखों की तरहा...
क्या पता था आसमांको
जमीं और उसके बीच
थमेंगी कोहरेकी चादर
दरार की तरहा...
ये उम्र बता जरा?
कब तब चलेगा यह
सिलसिला धुंप छाँव का
दिन और रात की तरहा...
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