रविवार, ५ मे, २०२४

सौदा



























सौदा

नींद का सौदा किया मैंने आखों से
आना नहीं दबे पांव उसने धोखे से

बादल ये लेकर स्याही नीली काली
जमातें है डेरा नजाकत भरें मौके से

घिर आते ही, सितारे चूपचाप कभी
महसूस होता है, स्पर्श कई हाथों से

भूल जाता हूँ पता नहीं कैसे खुदको
उड जाती हैं, नींद भी मेरी आखों से

शांत निरव शित समय कट जाता है
कहते सुनते सुख दुखों कि बातों से

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©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९

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