प्रित रीत
प्रित की रीति, कभी न सिखाओं किसीको
जानता है हरकोई खुद भलिभांति उसीको
रोग कहें कोई इसे, कोई कहें लत प्यार की
भाव सच्चा वो खुद जानें दुसरा पता रबको
होतेही अहसास, दो दिलों को धडकनों का
अच्छा बुरा इसका, कौन समझाएं किसको
खेल ये कुदरत का, मानो रचा रचाया सारा
क्यों करें दखलंदाजी क्या हक है किसीको
©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९
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