शुक्रवार, ६ सप्टेंबर, २०१९
कैसे कहें?
रान सोहळा
रान सोहळा
विभ्रम कवडशांचे भुलावे जणू नभाचे
वाऱ्यावर स्वैर खेळती तरंग ते जळाचे
लखलख सोहळा चौफेर हिरव्या रानी
तुषार दवांची चमके दौलत पानोपानी
अमृत थेंब झरती रान फुलांच्या ओठी
वाऱ्यासंगे डोलत भ्रमर तयांच्या पाठी
अलगद विरते फुंकर वेळूच्या स्वरांची
शिरशिरी सजवी मैफिल तृणपात्यांची
पिऊन फुलगंध भोवती नशीला वारा
गंध सुगंधी झाला धुंद आसमंत सारा
https://marathikavita.co.in/marathi-kavita-others/t31996/new/#new
© शिवाजी सांगळे 🦋
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९
विभ्रम कवडशांचे भुलावे जणू नभाचे
वाऱ्यावर स्वैर खेळती तरंग ते जळाचे
लखलख सोहळा चौफेर हिरव्या रानी
तुषार दवांची चमके दौलत पानोपानी
अमृत थेंब झरती रान फुलांच्या ओठी
वाऱ्यासंगे डोलत भ्रमर तयांच्या पाठी
अलगद विरते फुंकर वेळूच्या स्वरांची
शिरशिरी सजवी मैफिल तृणपात्यांची
पिऊन फुलगंध भोवती नशीला वारा
गंध सुगंधी झाला धुंद आसमंत सारा
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© शिवाजी सांगळे 🦋
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९
गुरुवार, ५ सप्टेंबर, २०१९
ग्वाही
बुधवार, ४ सप्टेंबर, २०१९
मंगळवार, ३ सप्टेंबर, २०१९
स्वतःचचं खरं
श्रांत दरख़्त
श्रांत दरख़्त
पतझड़ तो दूर है?
फिर भी पत्तें झड़ने लगें
बे मौसम, शायद
कुछ शाखाएं
कमजोर हो गई है !
जडें तो पहले ही
एकजान हुई थी मिट्टी से
कुछ बिखरी थी इर्दगिर्द
उस पुराने दरख़्त की !
परछाईयाँ भी आजकल
शरीर से दूर फैलाएँ हाथोंसी
नजर आने लगी...
शाम जो ढलने को है !
हाँ, कभी अनजान
भटके हुए परिंदों का
साथ होता है, केवल
कुछही समय तक,
उडने का बल होता है
उनके पंखों में?
प्रकृति निभाती है अपना धर्म
दिन उगतां है, दोपहर, शाम
और रात भी होती है,
दरख्त, साधूओं सा...
ध्यान मग्न अवस्था में
फैलाते हुये
दूर दूर जाती परछाईयाँ
अकेले... अंदर लिए
अतीत का एक तूफान
श्रांत श्रांत
https://marathikavita.co.in/hindi-kavita/t31989/new/#new
© शिवाजी सांगळे 🦋
संपर्क:९५४५९७६५८९
पतझड़ तो दूर है?
फिर भी पत्तें झड़ने लगें
बे मौसम, शायद
कुछ शाखाएं
कमजोर हो गई है !
जडें तो पहले ही
एकजान हुई थी मिट्टी से
कुछ बिखरी थी इर्दगिर्द
उस पुराने दरख़्त की !
परछाईयाँ भी आजकल
शरीर से दूर फैलाएँ हाथोंसी
नजर आने लगी...
शाम जो ढलने को है !
हाँ, कभी अनजान
भटके हुए परिंदों का
साथ होता है, केवल
कुछही समय तक,
उडने का बल होता है
उनके पंखों में?
प्रकृति निभाती है अपना धर्म
दिन उगतां है, दोपहर, शाम
और रात भी होती है,
दरख्त, साधूओं सा...
ध्यान मग्न अवस्था में
फैलाते हुये
दूर दूर जाती परछाईयाँ
अकेले... अंदर लिए
अतीत का एक तूफान
श्रांत श्रांत
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© शिवाजी सांगळे 🦋
संपर्क:९५४५९७६५८९
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