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संगोपन 🌿
निसर्गाने सोय केली प्रत्येकाची
घेतोय काळजी जो तो स्वतःची
चोच दिली त्यानेच चारा दिला
जीव नाही एक उपाशी राहिला
याला जीवन ऐसे नाव म्हणावे
म्हणूनी सर्वां सुखाने जगू द्यावे
शहरात हल्ली माणसे दूरावली
दिसता सुर्यपक्षी मने सुखावली
व्हावे निसर्ग न् आपले संगोपन
पर्यायाने सुखकर सर्वांचे जीवन
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बातें
रात दिन अजीब से खयाल मंडराते है
कैसे हो बसर सवालों में उलझाते है
ज़िन्दगी में अगर तु नहीं तो कुछ नहीं
यह तो सिर्फ कहने की ही बातें है
गैर है, ख्वाहिश रखना तुम्हारी जनाब
तेरे सिवा जीवन में और भी बातें है
पतझड़, सावन सिर्फ बसंत ऋतु नहीं
और भी मौसम बहार जैसे आतें है
होकर बेहाल इतराना नहीं खुशियों में
बदलाव दिनमें धूप छांव से आतें है
नाराज न होना कभी दु:खों पर अपने
असर उनके भी 'शिव' ढलने लगतें है
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